बात सिर्फ़ नाम की है

आखिर क्यूँ…

यूँ ढल जाया करते हो

मैं बयाँ नहीं कर सकती

तुम्हें खोने के डर को

यूँ हाथ मत छुड़ाओ

दिल काँप उठता है

यूँ मुखौटा मत पहना करो

मुझे ढूँढना नहीं आता है

फ़िलहाल;

कुछ क्षण भर के लिए ही सही

हमारे करीब बैठकर

हथेली सहला दिया करो

देखो,बार-बार ज़ुल्फ़ें सताती हैं

प्रेम भरी ठण्डक से

इन्हें हटा दिया करो

वो देखो,

चली आ रही हैं कुछ शामें हमारी ओर

बेमन के ही सही

हमारे संग इन्हें बिता लिया करो

नहीं तो ये साँझ हमसे रूठ जाएगी

और ये चार लफ़्ज़ों की बातें भी

मुँह मोड़ लेगी

बेशक तुम नज़रें न मिलाना हमसे

लेकिन नज़रें चुराकर ओझल न होना हमसे

चलो अब हठ मत करो

कबसे पुकार रहे हैं तुम्हें

अनजाने में ही सही

अपना नाम तो बता दो

बेवजह इतनी बातें कर लीं

कम से कम इस गुफ़्तगू को ही

कोई नाम दे दो

क्यूँकि बात सिर्फ़ नाम की है

तो हमें बेनाम न करो

इसी बहाने ही सही

कम से कम कुछ बोल तो लो।।

हाथ न थामना चाहो तो न सही

कम से कम मिल तो जाओ कहीं।।

Published by Ps Pooja

Writing is my passion.

10 thoughts on “बात सिर्फ़ नाम की है

  1. Ms. Pooja ji. Aapne bahut accha likha hain
    But main aapko ek chhota sa salah dena chahta hun
    Ki aap shayari gazal dashta jo bhi likhti hain,
    Aapke ketopic ke hishab se 200 se 300 word ke pahle aapko line nahi chhona hain

    Aapke jankari ke liye bta du main mobile se blogging karta hun
    Mujhe khud nahi pta mera blog dikhta kaisa hain

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